- अरविंद विद्रोही
- चौपाल का खबरी पटवारी लाल मांथे पर हाथ कर बै ठीक-ठाक तो है?
- कोई खराब खबर लेकर आए हो क्या?
मुखिया जी बहुत चिंता जनक खबर है। कहीं कोई अप्रिय घटना घट गई है क्य? नहीं मुखिया जी -संसद ने एक नई संस्कार और संस्कृति का जन्म दे दिया है ?वह है बाल संस्कृति और बैल संस्कृति। यह क्या कह रहे हो पटवारी? सही बात कर रहा हूं मुखिया जी! पक्ष विपक्ष में बजट पर धुआंधार बहस हो रही थी। इसी बहस के बीच इस संस्कृत का जन्म हुआ है। सत्ता पक्ष कह रहा है बजट जनहितकारी बजट है। विपक्ष के नेता खड़ा होकर कह दिया यह बजट जनहित कारी नहीं है? उन्होंने खामियों का उजागर करते हुए कह दिया इस बजट बजट में छात्रों के लिए”; नौजवानों के लिए; किसानों के लिए; छोटे-छोटे कारोबार करने वालों के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं है ? बजट में स्थान दिया गया है । बजट में केवल मुट्ठी भर उद्योगपतियों के लिए बजट की संरचना की गई है। यह कुर्सी बचाओ बजट है। है न सत्ता पक्ष को मिर्ची लगने वाली बात?यह वह व्यक्ति कह रहा है जिसे पप्पू साबित करने के लिए करोड़ों रुपय ए खर्च किए गए थे। तथा इस बात को जन जन तक पहुंचा दिया गया था। यहां तक कि हम भी सोचते थे सचमुच वह पप्पू ही है ? जिसका नाम राहुल गांधी है । अब पप्पू तो विरोधी दल का नेता बन गया है। पप्पू साबित करने वाले लोगों के समक्ष सीना तानकर खड़ा है । उनके आंख से आंख मिला रहा है।
सामाजिक व्यवस्था में जब विकृतियों आ जाती है तो नई संस्कृति का उदय हो जाता है। फिर दोनों संस्कृतियों की स्थापना के लिए संघर्ष चालू हो जाता है। नई संस्कृति और पुरानी संस्कृति के बीच। जिस संस्कृति के पक्ष में जनता खड़ी हो जाती है वह सर्वमान्य संस्कृति बन जाती है। पुरानी संस्कृति पर हसीए पर चली जाती है। यही सच है और इसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए मुखिया जी? बाल बुद्धि संस्कृति नई संस्कृति है और बैल संस्कृति पुरानी संस्कृति है। इन दोनों संस्कृतियों के बीच टकराव होना लाजमी है। यह है दो संस्कृतियों का टकराव। जनता को निर्णय करना है कौन सही है और कौन गलत संस्कृत है? पुरानी संस्कृति अहंकार की संस्कृति है गाली गलौज की संस्कृति है झूठ बोलने की संस्कृति है। नई संस्कृति इस संस्कृति के ऊपर हाबि हो रही है। संस्कृत टकराव की का संघर्ष बहुत लंबा संघर्ष चलता है। इतिहास इस बात का गवाह है।