मुंबई: वक्फ संशोधन बिल की खिलाफत के लिए तमाम मुस्लिम संगठन लामबंद हो रहे हैं। यह बिल संसद में लाया गया था और विपक्ष के नेताओं के विरोध के बाद इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। फिलहाल संसद की संयुक्त समिति इस बिल पर चर्चा कर रही है और जरूरी बदलाव के बाद यह बिल दोबारा सरकार के पास भेजा जाएगा। इसके बाद यह बिल संसद में दोबारा पेश होगा और बहस के बाद कानून का रूप लेगा।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इस कानून को लागू किया जा सकेगा। फिलहाल सरकार ने इस एक्ट में प्रस्तावित संशोधन को लेकर आम लोगों से सुझाव मांगे हैं। ऐसे में सभी मुस्लिम संगठन देश के मुस्लिम समाज से लगातार अपील कर रहे हैं कि इस बिल के विरोध ज्यादा से ज्यादा आवाज उठाई जाए। इस प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम भाग लें, इसे देखते हुए सोशल मीडिया के जरिये इसकी खिलाफत की मुहिम चलाई जा रही है।
बीते दिनों मुंबई में मुस्लिम संगठनों ने भी इस बिल के खिलाफ शरद पवार से मुलाकात की थी। आज भी मुंबई फ्रेंड्स कॉन्फ्रेंस में इसी बल के खिलाफ आवाज उठाई गई है।
आल इंडिया मिल्ली काउंसिल ने बीते शुक्रवार को बेंगलुरू में इस सिलसिले में एक मीटिंग का आयोजन किया। मीटिंग में सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पारित किया गया कि वक्फ बिल के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे। इस प्रस्तावित कानून के खिलाफ देश के ज्यादा से ज्यादा मुसलमानों को एक जुट किया जाएगा।
जमाअत इस्लामी हिंद और प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने लोकसभा में पेश किए गए नए प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक को वक्फ के संरक्षण और पारदर्शिता के नाम पर वक्फ संपत्तियों को तहस-नहस करने और हड़पने की एक घिनौनी साजिश करार दिया है। वे सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
प्रस्तावित विधेयक में वक्फ की परिभाषा, मुतवल्ली की हैसियत और वक्फ बोर्डों के अधिकारों में संशोधन किया गया है। इसके तहत सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड के सदस्यों की संख्या में वृद्धि के नाम पर गैर-मुस्लिमों को अनिवार्य रूप से सदस्य बनाने का प्रस्ताव है। सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या 13 तक हो सकती है, जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे। इसी तरह वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या 7 तक हो सकती है, जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे। यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो अल्पसंख्यकों को उनके धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना और संचालन का अधिकार देता है।
सभी धार्मिक ट्रस्टों और प्रबंधक समितियों के सदस्य और जिम्मेदार लोग हिंदू, सिख या अन्य धर्मों से संबंधित होने की अनिवार्यता है, जबकि वक्फ बोर्ड में गैर- मुस्लिमों की अनिवार्यता प्रस्तावित की गई है। विधेयक में वक्फ बोर्ड के सीईओ केलिए मुस्लिम होने की शर्त हटा दी गई है और यह निर्णय लिया गया है कि यह पद अब जॉइंट सेक्रेटरी के रैंक से कम का न हो।
विधेयक में वक्फ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे का रास्ता भी साफ किया गया है। कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का अधिकार दिया गया है और वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकार भी कलेक्टर को सौंपे गए हैं। यह विधेयक वक्फ बोर्ड के अधिकारों को कम करता है और सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाता है।
विधेयक में वक्फ संपतियों को वक्फ के रूप में इस्तेमाल किए जाने की परिभाषा को हटा दिया गया है, जिससे सांप्रदायिक तत्वों को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का मौका मिल सकता है। इसके अलावा, वक्फ देने वाले के लिए पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने की शर्त लगाई गई है, जो संविधान की आत्मा के खिलाफ है।
जमाअत इस्लामी हिंद, जमीयत उलमा-ए हिंद, जमाअत अहले हदीस और अन्य धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इस विधेयक को पूरी तरह से खारिज कर दिया है और सरकार से इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है। वे एनडीए में शामिल धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों और विपक्ष की सभी पार्टियों से भी आग्रह करते हैं कि वे इस विधेयक को संसद से पारित न होने दें। यदि यह विधेयक संसद में पेश किया गया, तो सभी न्यायप्रिय लोग इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाएंगे।
पत्रकार परिषद को संबोधित करने वाले
अॅड हातिम यूसुफ मुछाला (अध्यक्ष एपीसीआर),
• डॉ जहीर काजी (अध्यक्ष अंजुमन-ए- इस्लाम मुंबई), इकराम उल जब्बार (सेवानिवृत आईआर एस पुणे), मौलाना निज़ामुद्दीन फखरुद्दीन (पुणे),
मौलाना फहीम फलाही (सचिव अवकाफ सेल महाराष्ट्र),
• सरफराज आरजू (संपादक दैनिक हिंदुस्तान),
मौलाना अनीस अशरफी (अध्यक्ष रज़ा फाउंडेशन मुंबई), मौलाना आगा रूह जफर (इमाम खोजा जमात मुंबई),
• शाकिर शेख (समन्वयक महाराष्ट्र डेमोक्रेटिक फोरम मुंबई)