जयंत चौधरी, जाट-मुस्लिम एकता पर जोर देते हैं. राष्ट्रीय लोकदल की राजनीति, सहयोगी दल, भारतीय जनता पार्टी से ठीक उल्टा है. वे हिंदुत्व पर जोर नहीं देते, सामाजिक सद्भाव पर उनका जोर रहता है. जयंत चौधरी के 3 मकसद पूरे हो गए हैं. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिल चुका है. उनकी पार्टी का खोया जनाधार लौट आया है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वे एक बार फिर प्रासंगिक हो चुके हैं. जयंत चौधरी, अब एक बार फिर अपने पुराने गठजोड़ में वापसी कर सकते हैं.

राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के तेवर बदल गए हैं. वे नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री तो बन गए हैं लेकिन उन्हें योगी सरकार का कांवड़ पर फैसला पसंद नहीं है. वैसे तो इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है लेकिन इससे बहुत पहले, जयंत चौधरी इस फैसले का मजाक उड़ा चुके हैं. उनके सियासी मकसद पूरे हो चुके हैं, ऐसे में दबी जुबान में उनकी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि अब हमें गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है. जाट और मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखने वाले जयंत चौधरी ने उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार के इस फैसले पर सबसे पहले सवाल उठाया था. 

जयंत चौधरी ने कहा था, ‘कांवड़ यात्री जाति-धर्म के आधार पर सेवा नहीं लेते. धर्म से इस मुद्दे को नहीं जोड़ा जाना चाहिए. BJP ने फैसला ज्यादा सोच-समझकर नहीं लिया है, बस फैसला ले लिया. अभी भी समय है कि सरकार को फैसला वापस लेना चाहिए. अब कहां-कहां लिखें अपना नाम. क्या अपना नाम अपने कुर्ते पर भी लिख लें, नाम देखकर हाथ मिलाओगे मुझसे?’

जयंत चौधरी ने यह साफ कह दिया था कि कांवड़ की कोई पहचान कोई नहीं करता. कांवड़ियों की सेवा करने वालों की पहचान भी जाति से नहीं की जाती है. इस फैसले को सरकार ने सोच समझकर नहीं लिया है, इसे धर्म और जाति से नहीं जोड़ना चाहिए.

जयंत चौधरी ने कहा था, ‘अगर सभी अपनी दुकानों पर नाम लिख रहे हैं तो मैकडॉनल्ड और बर्गर किंग जैसी कंपनियां दुकानों पर क्या लिखेंगे. उनकी पहचान कैसे होगी. क्या अब कुर्ते पर नाम लिखें जिससे ये तय कर सकें कि हाथ मिलाना है या गले मिलना है.’

राजनीति मजबूरी खत्म, अब करेंगे दबाव की राजनीति!

केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी की राजनीतिक मजबूरी अब खत्म हो चुकी है. उनके पास अब जनाधार है, मुस्लिम और जाट वोटरों का साथ है. बीजेपी के साथ आने के बाद भी मुस्लिम वोटरों ने उनसे किनारा नहीं किया है. योगी सरकार के इस फैसले ने उन्हें एक बार फिर अवसर दे दिया कि वे मुस्लिमों को अपने पक्ष में कर सकें. उनका स्वाभाविक गठजोड़, अखिलेश यादव के साथ हमेशा से अच्छा रहा है. बीजेपी के साथ उनके गठजोड़ को कांग्रेस नेता प्रमोद उपाध्याय हमेशा से बेमेल बताते रहे हैं.

क्या पलटेंगे जयंत चौधरी?

कांग्रेस के यूपी मानवाधिका प्रकोष्ठ के पूर्व महासचिव प्रमोद उपाध्याय ने कहा, ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटर और मुस्लिम वोट बैंक, हमेशा से चौधरी परिवार को सपोर्ट करते आए हैं. राष्ट्रीय लोक दल की राजनीति ही इसी के इर्द-गिर्द घूमती है. जयंत चौधरी को लगने लगा है कि बीजेपी सरकार में उनकी भूमिका, बहुत बड़ी नहीं हो सकती. बीजेपी उन्हें वैसा अवसर नहीं दे सकती, जैसा अखिलेश और इंडिया गठबंधन के नेता दे सकते हैं. ऐसे में हो सकता है कि विधानसभा चुनावों में खुद को स्थापित करने के लिए एक बार फिर वे बीजेपी को छोड़कर वे पुराने गठबंधन में लौट जाएं.’

क्या बीजेपी से हटाना जयंत चौधरी की मजबूरी है?

कांग्रेस नेता प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि जयंत चौधरी, अल्पसंख्यकों को नाराज नहीं करेंगे. सिर्फ वे अपने दम पर चुनाव निकाल नहीं सकते हैं. उनकी राजनीतिक मजबूरी है कि या तो वे बीजेपी को चुनें या सपा को. 2013 में जब मुजफ्फरनगर दंगे भड़के थे तो उनके वोटर छिटके थे लेकिन 2022 में जयंत चौधरी एक बार फिर पुराने साथियों को मनाने में कामयाब हो गए थे. 

पलटने से होगा क्या?

कांग्रेस नेता प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि पश्चिमी यूपी की 10 सीटें ऐसी हैं, जहां जयंत चौधरी को जाट-मुस्लिम वोटरों का साथ मिल सकता है. यह काफी बड़ा आंकड़ा है, ऐसे में अपना वोट बैंक बचाने के लिए वे ऐसा फैसला कर सकते हैं. योगी सरकार के साथ जाने की तुलना में उन्हें फिर से अखिलेश यादव के पास जाने का फैसला पसंद आ सकता है. यूपी लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने कमाल लिया है. सपा और कांग्रेस को मिलाकर कुल 47 सीटें इस गठबंधन को मिली हैं. जयंत को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना भविष्य नजर आ सकता है. ऐसे में वे अगर पलटें तो कुछ गलत नहीं होगा.

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