आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ममता बनर्जी से पूछा सवाल, मांगा डेटा

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पश्चिम बंगाल सरकार ने आरक्षण का लाभ देने के लिए जिन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया, उनमें ज्यादातर मुस्लिम शामिल हैं. हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कई वर्गों को 2010 से दिए गए ओबीसी के दर्जे को 22 मई को खत्म कर दिया था और राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों के लिए इस तरह के आरक्षण को अवैध बताया था.

West Bengal News: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार  (5 अगस्त 2024)  को पश्चिम बंगाल की ममता सरकार से 77 समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल करने का आधार बताने का निर्देश दिया है, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम शामिल हैं. बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने मई में इस वर्गीकरण प्रक्रिया को अवैध घोषित कर दिया था जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. हाईकोर्ट ने विभिन्न जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के ममता बनर्जी सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था. इसको लेकर सरकार के वकील ने कोर्ट से सवाल किया था कि क्या हाईकोर्ट राज्य में सरकार चलाना चाहता है.

पश्चिम बंगाल सरकार ने आरक्षण का लाभ देने के लिए जिन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया, उनमें ज्यादातर मुस्लिम शामिल हैं. हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कई वर्गों को 2010 से दिए गए ओबीसी के दर्जे को 22 मई को खत्म कर दिया था और राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों के लिए इस तरह के आरक्षण को अवैध बताया था.

इसे लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, ‘ये सब क्यों हो रहा है…क्योंकि वे मुस्लिम हैं.’ उन्होंने कहा कि वे धर्म को इसके पीछे की वजह बताते हैं, जो कि सरासर झूठ है.

इंदिरा ने कहा कि आरक्षण देते वक्त सभी समुदायों पर विचार किया गया और मंडल कमीशन का भी ख्याल रखा गया है. उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार प्रदेश चलाना चाहती है लेकिन अगर कोर्ट इसे चलाना चाहता है तो उसे चलाने दें. हम चलाएं या ना चलाएं प्लीज हमें बताइए.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा डेटा

वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार ने जातियों की पहचाने के लिए क्या आयोग के साथ विचार-विमर्श किया, या क्या कोई सर्वे किया तो हमें बताएं. राज्य सरकार को यह बताना जरूरी है. चीफ जस्टिस ने   हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि आयोग ने जातियों को वर्गीकृत किया या नहीं या किसी सर्वे के डेटा का इस्तेमाल हुआ या नहीं, इस मामले में मुद्दा है, लेकिन रिजर्वेशन को रद्द किए जाने के फैसले के क्रांतिकारी प्रभाव हो सकते हैं.  

क्या प्रक्रिया अपनाई गई

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार कोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर करेगा जिसमें 77 जातियों को ओबीसी का दर्जा देने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की व्याख्या होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि क्या ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए राज्य द्वारा कोई परामर्श किया गया था. बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने बंगाल सरकार के फैसले को रद्द करते हुए कहा था कि इन समुदायों को ओबीसी का दर्जा देने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र आधार रहा है. अदालत ने यह भी कहा था कि उसका मानना है कि मुसलमानों की 77 जातियों को पिछड़ा घोषित करना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है. हाईकोर्ट ने अप्रैल और सितंबर 2010 के बीच 77 समुदायों को दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था.

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