जानें कारगिल जंग की पूरी कहानी, पाकिस्तान को दिया मुंहतोड़ जवाब, ये दिन नहीं भूलेगा हिंदुस्तान

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इतिहास गवाह है, जब-जब पाकिस्तान, भारत से भिड़ा है, मुंह की खाई है. साल 1948,1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान, भारतीय जवानों के पराक्रम का सामना कर चुका है. पाकिस्तान इतनी बार परास्त होने के बाद भी सुधरा नहीं और भारत के खिलाफ हमले बोलते रहा. साल 1999 में भी पाकिस्तान ने यही हिमाकत की. इस जंग में पाकिस्तान को ऐसा मुंहतोड़ जवाब मिला कि फिर दो दशक बाद तक, पाकिस्तान ये साहस दोबारा नहीं कर पाया.

भारतीय इतिहास में 26 जुलाई की तारीख, हमेशा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में कैद रहेगी. कारगिल विजय दिवस, हमारे सैनिकों की शौर्य गाथा है. साल 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला बोला और हमारी चोटियों पर कब्जा जमाने लगा तो वीर बलिदानी सैनिकों ने उन्हें मार खदेड़ा. इसकी कीमत उन्हें सर्वोच्च बलिदान देकर भी चुकानी पड़ी लेकिन पाकिस्तानी सेना को वहां से भागना पड़ा. 26 जुलाई ही वह तारीख है कि जब भारतीय चौकियों पर काबिज पाकिस्तानी सैनिकों को भारत ने खदेड़ दिया था. इस जंग में कई भारतीय सपूतों की जान गई, देश को कई परमवीर जवान मिले, जिनकी स्मृतियां हमेशा देश को याद रहेंगी.

भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर आज भी विवाद है. पाकिस्तान, हमारी जमीन पर कब्जा किए हुए है, जिसे पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से भी जानते हैं. यही दोनों देशों के बीच दुश्मनी की नींव में भी है. पाकिस्तान, आए दिन जम्मू-कश्मीर को अशांत करने की कोशिश में जुटा रहता है. ऐसी ही मंशा से पाकिस्तान ने साल 1999 में एक हिमाकत की थी.

फरवरी 1999 में लाहौर घोषणा पत्र पर भारत और पाकिस्तान के बीच शांति समझौता हुआ लेकिन पड़ोसी देश ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा. ये शांति बहुत कम दिनों के लिए रही. जब भारतीय जवान कारगिल सेक्टर से सर्दी की वजह से पीछे आए, तभी पाकिस्तान ने साल 1999 में धावा बोल दिया. कारगिल में पाकिस्तानी आतंकियों और सैनिकों ने घुसपैठ की. मई 1999 में सैनिकों को ये पता चला कि हमारी कई चोटियों पर पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया है. भारतीय जवानों को जब ये बात पता चली तो एक मिशन पर जवान लग गए. ‘ऑपरेशन विजय.’ ये जंग हमें हर हाल में जीतनी ही थी. हम पहले ही 1962 में अपनी जमीन का एक बड़ा टुकड़ा चीन से हार चुके थे. दोबारा हारने का जोखिम भारत नहीं ले सकता था. भारतीय जवान कारगिल की चोटियों की ओर आगे बढ़ने लगे.

कैसे शुरू हुई जंग?

दुश्मन कारगिल जिले के पहाड़ी इलाकों तक चढ़ आए थे. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर उनका कब्जा हो गया था. भारतीय सैनिकों ने मिशन विजय शुरू किया. भीषण लड़ाई के बाद सेना ने टाइगर हिल समेत कई इलाकों पर काबिज पाकिस्तान सेना को भगा दिया और तिरंगा लहरा दिया. यह युद्ध 26 जुलाई 1999 को खत्म हो गया था. भारत ने जीत हासिल की लेकिन कई वीर सपूतों को खो दिया. इस जंग में करीब 490 सैनिक मारे गए.

इसलिए मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस 

जंग में बेहद कम उम्र के कई सैनिक मारे गए. कई अधिकारी मारे गए लेकिन भारत की एकता को और समृद्ध कर गए. भारत आज के दिन को कारगिल विजय दिवस के नाम से मनाता है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक, भारत का विजयोत्सव मनाया जाता है. स्कूलों में कार्यक्रम होते हैं. इस जंग ने भारतीय सैन्य इतिहास में कुछ अमर बलिदानियों का नाम जोड़ दिया. उन्होंने युद्ध में असाधारण वीरता दिखाई, जिन्हें युवा आज भी नायक मानते हैं.

कैप्टन विजय बत्रा 

कैप्टन विजय बत्रा कारगिल युद्ध के हीरो रहे हैं. उनका स्लोगन ‘ये दिल मांगे मोर’ बच्चे-बच्चे की जुबान पर है. उन्होंने न केवल भारत को अहम जीत दिलाई बल्कि पाकिस्तानियों को ऐसा घाव दे गए, जिन्हें वे उम्रभर नहीं भूलेंगे. उन्होंने पॉइंट 4875 पर काबिज पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला और कब्जा जमा लिया. वे इस जंग में शहीद हो गए और अपने साथियों की जिंदगी बचा ली. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला.

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे 

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे भी कारगिल वार के हीरो रहे. उन्होंने दुश्मनों के जंग में दांत खट्टे कर दिए. उन्होंने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया. वे दुश्मन की सैन्य टुकड़ियों पर भारी पड़े. उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला.

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव महज 19 साल के थे. इस जंग में वे बुरी तरह जख्मी हो गए थे. उन्होंने टाइगर हिल पर बहादुरी से लड़ाई लड़ी, जिससे भारतीय सेना ने दुश्मनों के प्रमुख बंकरों को हासिल कर लिया. उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. जंग में वे दुश्मनों पर भारी पड़े थे.

राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार की वीरता भी किसी से कम नहीं थी. उन्होंने प्वाइंट 4875 पर बहुत बहादुरी दिखाई. वे गोलियों से छलनी हो गए थे. उन्होंने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे. अपनी सैन्य टुकड़ी की भी उन्होंने अंतिम सांस तक हिफाजत की. उन्होंने भी इस युद्ध के बाद परमवीर चक्र दिया गया.

मेजर राजेश अधिकारी

मेजर राजेश अधिकारी ने टोटलिंग में एक बंकर पर कब्जा करने के लिए एक मिशन की अगुवाई की. जंग में आगे बढ़ते-बढ़ते वे भी गोलियों से छलनी हो गए. उन्हें लड़ते-लड़ते दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए. उन्होंने अपने बंकर पर कब्जा जमा लिया. उन्हें युद्ध के बाद महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

ये दिन नहीं भूलेगा हिंदुस्तान

भारत ये दिन कभी भूल नहीं सकता. जिन जगहों पर हमारी पोजिशनिंग, पाकिस्तान पर नजर रखने में मदद करती है, वहीं पाकिस्तानियों ने डेरा जमा लिया था. उन्हें भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया और खदेड़ दिया. कारगिल के नायकों की विरासत आज भी कायम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जवानों को श्रद्धांजलि देने द्रास वार मेमोरियल जा रहे हैं.

क्यों पाकिस्तान ने किया था हमला?

करगिल, हाई पॉइंट पर है. पाकिस्तानी सेना लद्दाख और कश्मीर के बीच इस अहम जगह पर हमला करके दोनों जगहों के बीच संपर्क को खत्म कर देना चाहती थी. भारत ने पाकिस्तान के इस मिशन को नाकाम कर दिया. बर्फीली चोटियों पर भीषण जंग लड़ी गई, जिसमें हमने वीर सपूतों को खो दिया. भारत ये दिन हमेशा याद रखेगा.

 

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