आरक्षण पर फिर छिड़ी ‘महाभारत’, आखिर क्या चाहते हैं प्रदर्शनकारी? समझिए सारी बात

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SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित और बहुजन संगठनों द्वारा आज भारत बंद का आह्वान किया गया है. जगह-जगह से अब इसकी तस्वीरें भी सामने आने लगी है. दलित और आदिवासी संगठन के अलावा अलग-अलग राज्यों की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी सपोर्ट कर रही है. इनमें प्रमुख रूप से बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, एलजेपी समेत अन्य संगठनों का नाम शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर और कोटा के भीतर भी कोटा लागू करने के फैसले के खिलाफ दलित आदिवासी संगठनों ने आज यानी बुधवार को 14 घंटे के लिए भारत बंद का आह्वान किया है. नेशनल कन्फेडरेशन आफ दलित एंव आदिवासी आर्गेनाइजेशंस नामक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दलित और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ बताया है. केंद्र सरकार से इसे रद्द करने की मांग की है. दरअसल हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कोटा के अंदर कोटा से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है.

यानी राज्य सरकार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके. राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में सक्षम होंगी. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है. हालांकि कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगरी का आधार उचित होना चाहिए.

आज भारत बंद का ऐलान

कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने यह साफ कहा था कि SC के भीतर किसी एक जाति को सौ फीसदी कोटा नहीं दिया जा सकता है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने यह फैसला सुनाया है.

मौलिक सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह?

इस फैसले के बाद से देशभर में विवाद का विषय बना हुआ है. विरोध करने वालों की माने तो इससे आरक्षण व्यवस्था के मौलिक सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. कई संगठनों ने इसे आरक्षण नीति के खिलाफ बताया. उनका कहना है कि इससे आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था पर नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक न्याय की धारणा कमजोर हो जाएगी. विरोध करने वालों का तर्क है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए हैं. तर्क यह भी अस्पृश्यता या छुआछूत के भेद का शिकार हुई इन जातियों को एक समूह ही माना जाना चाहिए. वे इस आरक्षण खत्म करने की साजिश बता रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती

भारत बंद का मुख्य उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देना और इसे वापस लेने की मांग करना और सरकार पर दबाव डालना है. संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कोटे में कोटा वाले फैसले को वापस ले या पुनर्विचार करे, NACDAOR ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी से बुधवार को शांतिपूर्ण आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की है. संगठन द्वारा सरकारी नौकरियों में पदस्थ एससी, एसटी और ओबीसी कर्मचारियों का जातिगत आंकड़ा जारी करने और भारतीय न्यायिक सेवा के माध्यम से न्यायिक अधिकारी और जज नियुक्त करने की मांग रखी है.

क्यों हुआ भारत बंद का आह्नान?

NACDAOR के मुताबिक सरकारी सेवाओं में SC/ST/OBC कर्मचारियों के जातीय आधारित डेटा को तत्काल जारी किया जाए ताकि उनका सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके. समाज के सभी वर्गों से न्यायिक अधिकारियों और जजों की भर्ती के लिए एक भारतीय न्यायिक सेवा आयोग की भी स्थापना की जाए ताकि हायर ज्यूडिशियरी में SC, ST और OBC श्रेणियों से 50 फीसदी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए.

भारत बंद का किसने किया सर्मथन?

आज भारत बंद को दलित और आदिवासी संगठन के अलावा अलग-अलग राज्यों की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी सपोर्ट कर रही है. इनमें प्रमुख रूप से बहुजन समाज पार्टी, भीम आर्मी , आजाद समाज पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, एलजेपी समेत अन्य संगठनों का नाम शामिल है. कांग्रेस ने भी भारत बंद का समर्थन किया है. इन संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है इसे वापस लिया जाना चाहिए.

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