पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस दिन श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था उस दिन घनघोर अंधेरा था. तेज आंधी और बारिश हो रही थी. इस अंधेरी रात में रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था. भगवान कृष्ण ने माता देवकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया था.
देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. दिल्ली से लेकर पटना तक भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. इस मौके पर हम आपको श्रीकृष्ण की जन्म कथा के बारे में जानते हैं. दरअसल, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस दिन श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था उस दिन घनघोर अंधेरा था. तेज आंधी और बारिश हो रही थी. इस अंधेरी रात में रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था. भगवान कृष्ण ने माता देवकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया था. कृष्णजी का जन्म मथुरा में मामा कंस के कारागार में हुआ था. माता देवकी राजा कंस की बहन थी. इसीलिए भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है.
कंस की बहन देवकी
द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा. कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. जब कंस देवकी को छोड़ने सुसुराल जा रहा था तभी आकशवाणी हुई-‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से पैदा हुए आठवां बालक तेरा वध करेगा.
यह सुनाकर कंस ने दोनों को मारने की ठानी, तब देवकी ने कहा कि मेरे गर्भ जो भी संतान पैदा होगा उस मैं तुम्हें सौंप दूंगी. अपने बहनोई को छोड़ दो. कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया.
श्रीकृष्ण का जन्म
देवकी-वसुदेव को जो भी बच्चे होते उसे कंस मार देता था. सात बच्चों के बाद आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था. जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ. कोठरी के दरवाजे खुल गए और तेज प्रकाश हुआ. तब तक आकाशवाणी हुई कि विष्णुजी ने कृष्ण जी के अवतार में देवकी के कोख में जन्म लिया है. उन्हें गोकुल में बाबा नंद के पास छोड़ आएं और उनके घर एक कन्या जन्मी है, उसे मथुरा ला कर कंस को सौंप दें.
आकाशवाणी सुनते ही वासुदेव के हाथों की हथकड़ी खुल गई. वासुदेव जी ने सूप में बाल गोपाल को रखकर सिर पर रख लिया और गोकुल की ओर चल पड़े. उफनती यमुना में शेषनाग का साया में वो गोकुल पहुंचे.
जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली. वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा, लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई. फिर कन्या ने कहा कि हे मूर्ख कंस! तूझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है. वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं.
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