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बैलट पेपर और EVM पर जारी हंगामा, क्या है ऑनलाइन वोटिंग की समस्या?

Voting in India: भारत में चुनाव कराने के लिए राज्य और केंद्रीय स्तर पर ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ देश ऐसे भी हैं जहां सीमित संख्या में ऑनलाइन वोटिंग भी करवाई जाती है.

चुनाव की प्रक्रिया और तरीके में समय के साथ बदलाव हुआ है. टेक्नोलॉजी आने के चलते भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों यानी EVM का इस्तेमाल किया जा रहा है. कुछ साल पहले से VVPAT मशीनों का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है जिससे कि मतदाता अपने वोट के बारे में बेहतर तरीके से जान सकें. इस बीच ईवीएम मशीनों को लेकर कई तरह के आरोप भी लग रहे हैं. ईवीएम मशीनों पर सवाल उठने और पारंपरिक बैलट पेपर को पुराना माने जाने के कारण वोटिंग के अन्य वैकल्पिक तरीकों की भी चर्चा होती रही है. 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम-वीवीपैट से जुड़ी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. ईवीएम के बजाय बैलट पेपर से वोटिंग कराने की याचिका को भी खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी उम्मीदवार को गड़बड़ी लगती है तो वह नतीजे घोषित होने के 7 दिन के भीतर जांच की मांग कर सकता है. ऐसे मामलों में माइक्रो कंट्रोलर की मेमोरी की जांच एक इंजीनियर से करवाई जाएगी. यानी सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में ईवीएम से ही वोटिंग होती रहेगी.

क्यों है जरूरत?

साल 2019 में चर्चाएं थीं कि विदेश में रहने वाले भारतीय प्रवासियों के लिए ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा शुरू की जाएगी. हालांकि, अभी तक ऐसी व्यवस्था नहीं हुई है. 2010 तक प्रवासियों को वोट डालने का अधिकार भी नहीं था. अब नियम ये हैं कि अगर कोई प्रवासी वोट डालना चाहता है तो उसे बूथ पर खुद जाकर वोट डालना होगा. प्रवासियों के संगठनों ने रिमोट वोटिंग के लिए अदालतों के दरवाजे भी खटखटाए हैं लेकिन अभी तक इसमें कामयाबी नहीं मिल पाई है. 

इन प्रवासियों के अलावा, भारत के ही कई राज्यों के लाखों लोग दूसरे राज्यों में रहकर काम करते हैं. गरीब कामगार और इस तरह के अन्य लोग टिकट निकालकर घर जाने, फिर वोट करने और फिर से काम पर लौटने का जोखिम नहीं लेते हैं. इसके अलावा, वोट करने जाने के लिए उन्हें छुट्टी की जरूरत भी होती है. नॉन-रेगुलर सेक्टर में छुट्टी लेने वाले लोगों के पैसे भी कटते हैं. यही कारण है कि भारत के कई राज्यों में वोटिंग का प्रतिशत काफी कम रहता है.

क्या है संभावना?

भारत में फिलहाल किसी भी बड़े चुनाव में वोटिंग नहीं होती है. साल 2000 में अमेरिका ने ऑनलाइन वोटिंग का प्रयोग किया था. हालांकि, सफल होने के बावजूद इस प्रयोग को साल 2004 में बंद कर दिया गया क्योंकि वहां इसको लेकर कई तरह के सवाल उठाए गए थे. अमेरिका के बाद एस्टोनिया ने भी ऑनलाइन वोटिंग करवाई लेकिन वहां सिर्फ 5 प्रतिशत लोगों ने ही ऑनलाइन वोटिंग का विकल्प चुना. साल 2013 में एस्टोनिया के 51 प्रतिशत लोगों ने ऑनलाइन वोटिंग की.

मौजूदा समय में कनाडा, फ्रांस, एस्टोनिया और स्विटजरलैंड जैसे दर्जनों देशों में ऑनलाइन वोटिंग का विकल्प दिया जाता है. इनमें से कुछ देश स्थानीय स्तर के तो कुछ देश राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में ऑनलाइन वोटिंग करवाते हैं. हालांकि, इतने इंतजामों और बेहतर टेक्नोलॉजी के बावजूद किसी भी देश में पूरा का पूरा चुनाव ऑनलाइन तरीसे से नहीं होता है क्योंकि इसमें कई सारी खामियां भी हो सकती हैं.

क्यों मुश्किल है ऑनलाइन वोटिंग?

साल 2023 में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम तैयार करने की बात कही थी. इस वोटिंग सिस्टम के जरिए घर से दूर रहने वाले लोग भी वोट डाल सकते थे. 16 जनवरी 2023 को राजनीतिक दलों के सामने इसका इसका लाइव डेमो दिखाया गया. इन दलों ने इसका विरोध किया जिसके चलते इसे लागू नहीं किया जा सका. इस बारे में साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि ऐसी किसी भी प्रक्रिया को अपनाने से पहले साइबर सुरक्षा को पुख्ता करना बेहद जरूरी है.

अन्य विशेषज्ञों का भी मानना है कि ऑनलाइन वोटिंग के मामले में देश के बाहर बैठी ताकतें चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं. इससे न सिर्फ चुनाव के नतीजे बदल सकते हैं बल्कि बड़े स्तर लोगों की पहचान लीक होने जैसे खतरे भी सामने आ सकते हैं. उदाहरण के लिए किसी दूसरे शख्स के आईडी-पासवर्ड को हैक करके अन्य व्यक्ति या संस्थाएं वोट डलवा सकती हैं. यही वजह है कि बड़े से बड़े और विकसित देशों में आज भी ईवीएम या बैलट पेपर से ही वोटिंग करवाई जाती है और इन्हें इंटरनेट से अलग रखा जाता है.

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