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आखिर क्यों SC के जजों की बेंच करेगी अनुच्छेद 39B की व्याख्या? जानें सारा मामला

सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में पुरानी और जर्जर हो चुकी बिल्डिंग्स को अधिग्रहित करने के लिए एक कानून लेकर आई है. ये कानून इसलिए लाया गया है, क्योंकि इनमें रहने वाले किराएदारों के पास यहां रहने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, तो वहीं मकान मालिकों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे जर्जर और पुरानी हो चुकी बिल्डिंग की मरम्मत करा सकें. ऐसे में इन इमारतों में रहने वाले लोगों की जान पर हमेशा खतरा बना रहता है.

क्या निजी संपत्तियां, मैटेरियल रिसोर्सेज ऑफ द कम्यूनिटी (समुदाय के भौतिक संसाधन) हो सकती हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र सरकार एक कानून लेकर आई. कानून के खिलाफ निजी संपत्ति के मालिकाना हक वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है.

दरअसल, राज्य में निजी स्वामित्व वाली कई ऐसी इमारतें हैं, जो जर्जर और पुरानी हो चुकी हैं. इसके बावजूद उसमें किराएदार कई सालों से रह रहे हैं. पुरानी और जर्जर होने के कारण उसमें रहने वाले लोगों की जान पर हमेशा खतरा बना रहता है. ऐसी बिल्डिंग में रहने वाले किराएदारों के पास दूसरी जगह जाने का विकल्प नहीं है, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं है. वहीं, मकान मालिक इन बिल्डिंग की मरम्मत नहीं करा पाते, क्योंकि उनके पास भी किराए से उतने पैसे नहीं आते.

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर करते हुए कहा कि क्या निजी मालिकाना हक वाले संसाधनों को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र के कानून के खिलाफ भूस्वामियों द्वारा दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.

9 जजों वाली बेंच का नेतृत्व कर रहे डीवाई चंद्रचूड़

डीवाई चंद्रचूड़ 9 जजों वाली एक संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं, जो मकान मालिकों की ओर से दायर याचिकाओं से खड़ी हुईं जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है. चीफ जस्टिस ने समुदाय में स्वामित्व और एक व्यक्ति के अंतर का उल्लेख किया. उन्होंने निजी खदानों का उदाहरण दिया और कहा कि वे निजी खदानें हो सकती हैं. लेकिन व्यापक अर्थ में ये समुदाय के भौतिक संसाधन हैं. उन्होंने कहा कि मुंबई में इन इमारतों जैसे मामले को देखें. तकनीकी रूप से, आप सही हैं कि ये निजी स्वामित्व वाली इमारतें हैं, लेकिन कानून (म्हाडा अधिनियम) का कारण क्या था… हम कानून की वैधता पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं और इसका स्वतंत्र रूप से परीक्षण किया जाएगा. सुनवाई पूरी नहीं हुई और बुधवार यानी आज आगे की सुनवाई होगी.

दरअसल, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई घनी आबादी वाला शहर है, जहां कई ऐसी इमारतें हैं, जो काफी साल पुरानी हैं और मरम्मत के आभाव में वे जर्जर हो गईं हैं. इसके बावजूद उन इमारतों में कई परिवार रहते हैं. ऐसी बिल्डिंग के धाराशाई होने का खतरा बना रहता है. ऐसे में इन जर्जर इमारतों की मरम्मत के लिए महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) कानून, 1976 बिल्डिंग में रहने वाले लोगों पर सेस (उपकर) लगाता है. इस सेस का पेमेंट मुंबई भवन मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को किया जाता है, जो इन इमारतों की मरम्मत करता है.

महाराष्ट्र सरकार के इस कानून के खिलाफ मुख्य याचिका 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी, 2002 को इसे 9 जजों की पीठ को भेज दिया गया. इससे पहले इसे 3 बार 5 और 7 जजों की बेंच के पास भेजा जा चुका है. 

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