Election Commission Silent: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, लेकिन सवालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। एनडीए की भारी जीत (202 सीटें) ने तो जश्न का माहौल बना दिया, लेकिन विपक्ष—खासकर कांग्रेस और राहुल गांधी—के आरोपों ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्या यह जीत ‘विकास’ की है या ‘वोट चोरी’ की? और चुनाव आयोग (ईसीआई) की चुप्पी—क्या यह निष्पक्षता की मिसाल है या सत्ता की ‘मौन सहमति’? आइए, इस ‘कटाक्षपूर्ण’ विश्लेषण से जनता को जागरूक करते हैं, ताकि लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हों, न कि ‘गायब’ हो जाएं!
1. वोट चोरी का ‘जादू’: 2.5 करोड़ अतिरिक्त वोट कहां से आए?
राहुल गांधी ने चुनाव से पहले ही ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकालकर चेतावनी दी थी—ईसीआई और मोदी सरकार मिलकर मतदाता सूची में हेरफेर कर रही हैं। नतीजे आने के बाद दावा और मजबूत: बिहार में 7.42 करोड़ मतदाता थे, 66.91% मतदान (लगभग 4.96 करोड़ वोट), लेकिन गिनती में 7.45 करोड़ वोट! यानी 2.5 करोड़ ‘फर्जी’ वोट कहां से प्रकट हो गए? विश्व बैंक के फंड से?
ईसीआई ने राहुल के आरोपों को ‘बेबुनियाद’ बताते हुए एक पत्र जारी किया, लेकिन सबूत? शून्य। प्रशांत किशोर जैसे ‘स्वतंत्र’ विश्लेषक भी अब चिल्ला रहे हैं—मधुबनी में 30% लोग तो उनके पार्टी के सिंबल को जानते भी नहीं थे, फिर 1 लाख+ वोट कैसे? अगर आरोप गलत हैं, तो राहुल पर एफआईआर क्यों नहीं? या ईसीआई को ‘पत्र-पत्रिकाओं’ से ही काम चलाना पड़ रहा है, क्योंकि प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवालों का ‘तूफान’ आ जाएगा?
कटाक्ष: ईसीआई, अगर आप निष्पक्ष हैं, तो ‘वोट गिनती ऐप’ लॉन्च कर दीजिए—हर वोटर को लाइव अपडेट! वरना लगेगा कि आपका ‘मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट’ सिर्फ विपक्ष के लिए है, सत्ता के लिए नहीं।
2. महिलाओं के खाते में 10 हजार: ‘सशक्तिकरण’ या ‘वोट खरीद’ का ड्रामा?
चुनाव के ठीक बीच में एनडीए सरकार ने 1.25 करोड़ महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपये ‘ट्रांसफर’ कर दिए—मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के नाम पर। विपक्ष चिल्लाया: यह ‘स्टेट-स्पॉन्सर्ड ब्राइबरी’ है! ईसीआई के नियम साफ हैं—चुनावी लाभ की घोषणा पर रोक। लेकिन क्या हुआ? ईसीआई ‘मूक दर्शक’ बनी रही।
अब सवाल: विश्व बैंक के 14,000 करोड़ रुपये कहीं इसी ‘महिला सशक्तिकरण’ में तो डायवर्ट नहीं हो गए? (जैसा कि जन सुराज ने आरोप लगाया।) अगर ईसीआई का पत्र सही कहता है कि ‘ऐसी घोषणाओं को रोका जाएगा’, तो बिहार चुनाव क्यों नहीं रद्द? या यह सिर्फ ‘शोपीस’ पत्र था, ताकि जनता को लगे कि ‘कुछ तो किया’?
कटाक्ष: ईसीआई, आपका ‘मॉडल कोड’ तो भाजपा के लिए ‘मॉडल वॉक’ बन गया! केजरीवाल को दिल्ली में पैसे बांटने नहीं दिए, लेकिन बिहार में ‘धन वर्षा’ हो गई। क्या यह ‘लिंग समानता’ है—महिलाओं को वोट के बदले पैसे, और पुरुषों को… चुप रहना?
3. ईसीआई की ‘चुप्पी’: सत्ता का ‘गुलाम’ या संस्था का ‘सम्मान’?
बार-बार सवाल पूछे गए: वोटर लिस्ट में 25 लाख फर्जी नाम क्यों? चरणबद्ध चुनाव में हेरफेर कैसे? लेकिन जवाब? भाजपा के प्रवक्ता आ जाते हैं, ईसीआई गायब। अशोक गहलोत ने सही कहा—ईसीआई ‘मूक साक्षी’ बनी रही। यह देखकर मन में सवाल उमड़ते हैं: क्या ईसीआई भी ‘ईडी/आईटी डिपार्टमेंट’ की तरह सत्ता का ‘उपकरण’ बन गई है?
भाजपा बिना बड़े विकास के (क्या बिहार में ‘विकास’ सिर्फ वादों तक सीमित है?) कैसे बार-बार जीत रही? विपक्ष का दावा: ईसीआई का ‘पूर्ण सहयोग’। 272 पूर्व अधिकारियों का पत्र राहुल पर हमला करता है, लेकिन उनके बीजेपी कनेक्शन पर चुप्पी क्यों?
कटाक्ष: ईसीआई, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लीजिए न! सवालों का ‘फ्लड’ आ जाएगा, लेकिन कम से कम जनता को लगेगा कि आप ‘संस्थागत’ हैं, न कि ‘संस्थागत गुलामी’ के शिकार। वरना, अगला चुनाव ‘ईसीआई बनाम जनता’ हो जाएगा!
जागरूकता का संदेश: लोकतंत्र बचाना हमारा कर्तव्य
यह ‘कटाक्ष’ नहीं, चेतावनी है। बिहार का परिणाम ‘लोकतंत्र की जीत’ कहलाया, लेकिन विवादों ने ‘लोकतंत्र पर सवाल’ खड़े कर दिए। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और विपक्ष सड़कों पर उतरेंगे, लेकिन असली बदलाव जनता से आएगा।
- क्या करें? वोटर आईडी चेक करें, फर्जीवाड़े की शिकायत करें (ECI ऐप पर), और सवाल पूछें—बिना डर के।
- सवाल ईसीआई से: सभी आरोपों पर खुली जांच, प्रेस कॉन्फ्रेंस, और निष्पक्षता साबित करें। अगर नहीं, तो बिहार 2025 ‘लोकतंत्र का काला अध्याय’ बन जाएगा।
