Lucknow News– समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक भावुक और बेबाक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने राजनीति में परिवारवाद के आरोपों को खारिज करते हुए भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत का सहारा लिया। यादव ने बीजेपी समर्थित मीडिया को ‘दानाजीवी’ (धन-जीवी) करार देते हुए उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और समाज को बांटने का आरोप लगाया। यह बयान बिहार विधानसभा चुनावों के बीच आया है, जहां सपा के गठबंधन सहयोगी आरजेडी को कड़ी टक्कर मिली है।
परिवार को ‘त्यागवाद’ का प्रतीक बताया
वीडियो में अखिलेश यादव ने कहा, “भारतीय समाज की पहली इकाई परिवार है। क्या दानाजीवी मीडिया को यह ज्ञान नहीं? रामायण में राम का त्याग, महाभारत में पांडवों की एकता – ये सब परिवार के बलिदान की कहानियां हैं। लेकिन कुछ मीडिया हाउस इनकी विकृति करके परिवार को बदनाम कर रहे हैं।” उन्होंने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि अगर परिवारवाद इतना बुरा है, तो पार्टी को अपने संगठन से सभी उन नेताओं को निकाल देना चाहिए जिनके परिवार राजनीति में हैं, या फिर पारिवारिक व्यवसायों को दान करने की शर्त पर समर्थन बंद कर देना चाहिए। “हम परिवार से भागकर झोला नहीं उठा लेंगे, बल्कि गर्व से कहेंगे कि हमारा परिवार हमारी ताकत है,” यादव ने जोर देकर कहा।
यह बयान सपा की ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को मजबूत करने का प्रयास लगता है, जहां परिवार को सामाजिक एकता का प्रतीक बनाया जा रहा है। यादव ने कहा कि गरीबी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ही ये ‘झूठी नेपोटिज्म की थ्योरी’ फैलाई जा रही है।’
दानाजीवी मीडिया’ पर सीधा हमला: पूर्वाग्रह और अपमान का आरोप
अखिलेश ने कुछ मीडिया चैनलों और अखबारों पर राजनीतिक निष्ठा के चश्मे से अंधे होने का आरोप लगाया। “ये दानाजीवी मीडिया कवियों और धार्मिक भावनाओं का अपमान कर रहे हैं, जबकि खुद अपने परिवारों के विशेषाधिकारों पर चुप्पी साधे रहते हैं। क्या पत्रकारिता और व्यवसाय में भी नेपोटिज्म खत्म करेंगे?” उन्होंने चुनौती दी। यादव ने कहा कि ये मीडिया हाउस समाज को परिवारों से अलग करने की साजिश रच रहे हैं, जो वास्तव में सामाजिक एकता को कमजोर करने का काम है।
सपा समर्थकों ने इस बयान को सोशल मीडिया पर खूब सराहा, जबकि बीजेपी ने इसे ‘परिवार-केंद्रित राजनीति का बचाव’ बताकर खारिज कर दिया। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “यादव परिवार की राजनीति हमेशा से ही सत्ता-केंद्रित रही है, महाकाव्यों का सहारा लेना उनकी हार का रोना है।”
बिहार चुनावों का संदर्भ: वोट-चोरी पर तीखी प्रतिक्रिया
यह संदेश बिहार चुनाव परिणामों के ठीक बाद आया है, जहां महागठबंधन (आरजेडी-सपा-कांग्रेस) को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। अखिलेश ने हाल ही में बेंगलुरु में कहा था कि ‘वोट चोरी नहीं, यह डकैती है’। तेजस्वी यादव की लोकप्रियता के बावजूद एनडीए की जीत को वे ‘विभाजनकारी राजनीति’ का नतीजा मानते हैं। सपा नेता ने कहा, “बिहार में नौकरियां और विकास का एजेंडा था, लेकिन दूसरी तरफ सिर्फ बंटवारे की राजनीति।” यादव ने चेतावनी दी कि अगर ‘वोट-चोरी’ जारी रही, तो देश में नेपाल जैसी विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।
राजनीतिक पृष्ठभूमि: यादव परिवार की विरासत और चुनौतियां
अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव के बेटे, 2000 से सक्रिय राजनीति में हैं। वे 2012-17 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे और 2024 लोकसभा चुनावों में कन्नौज से जीते। लेकिन सपा में परिवारिक कलह (चाचा शिवपाल सिंह यादव से विवाद) और गठबंधन की कमजोरियां उनकी राह में बाधा बनीं। हाल ही में उनकी बेटी अदीति यादव की राजनीतिक एंट्री की अटकलें भी जोर पकड़ रही हैं, जो परिवारवाद बहस को और हवा दे रही हैं।
प्रभाव: विपक्ष की एकजुटता पर सवाल
विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान इंडिया गठबंधन में दरारें उजागर कर रहा है। हाल के दिनों में अखिलेश ने कांग्रेस पर तंज कसे हैं, कहा “कांग्रेस खत्म हो चुकी है, वे अपने पत्रकार भेजकर सवाल पूछवाते हैं।” बिहार हार के बाद सपा आरजेडी के साथ खड़ी है, लेकिन आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है।
अखिलेश का यह संदेश न केवल बीजेपी-मीडिया पर हमला है, बल्कि सपा कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का प्रयास भी। 2027 यूपी चुनावों से पहले यह बहस और तेज होने की संभावना है। सपा ने कहा, “परिवारवाद नहीं, यह त्यागवाद है – समाज को जोड़ने वाली शक्ति।”
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